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Saturday, August 15, 2009

हिन्दी फिल्म उद्योग (बॉलीवुड)की कुछ हस्तियों के शंकर-जयकिशन के बारे में दिलचस्प कथन! अभय के सौजन्य से.

1) प्रत्यक्ष कथन


1 ए1) लता मंगेशकर

गीत: एहसान तेरा होगा मुझपर..... (जंगली)---------------------------------

लता मंगेशकर: हाँ अमीन भाई! आपने मेरा यह 'रिकॉर्ड' बजाया, इससे मुझे एक बात याद आ गयी.
अमीन सायानी: बोलिए
लता मंगेशकर: ये गाना शम्मी कपूर-जी के लिए था. रफी साहब ने गाया था, और जब वो 'पिक्चराइज़' कर रहे थे तो 'डायरेक्टर' को ये लगा कि ये गाना 'हीरोइन' का भी होना चाहिए. तो उन्होंने क्या किया कि उन्होंने उसका 'म्यूज़िक' अलग रख लिया, पर रफ़ी साहब की आवाज़ पर सायरा बानो-जी से उन्होंने 'ऐक्टिंग' करवा लिया.
अमीन सायानी : ओ हो हो! (हंसते हुए)

लता मंगेशकर: तो वो गाना था रफ़ी साहब का और वो गा रही थीं. और एक दिन जयकिशनजी ने बुलाया मुझे और कहा कि 'ये गाना आपको करना है'. तो मैंने जयकिशनजी से कहा कि 'जयकिशनजी! इसका सुर तो बहुत ऊंचा है, अंतरा इतना ऊंचा है तो मैं कैसे गाऊंगी?' बोले कि 'आप कोशिश तो करके देखिए!' मैंने कहा 'ठीक है'. तो गाना लगाया गया सामने और मैं वो 'पिक्चर' देखके गा रही थी. और वो 'पिक्चर' देखके वो गाना 'रिकोर्ड' किया, और उसके बाद मैदान ऐसा खुला मिल गया कि बाद में उन्होंने "जिया हो जिया..." वो भी मुझसे ऐसे ही करवाया मुझसे, और 'ओ मेरे शाह-ए-खुबा' वो भी, उसमें भी रफ़ी साहब का गाया हुआ गाना, मैंने उस 'म्यूज़िक' पे गाया. तो इस तरह ३-४ गाने मैंने गाए थे.


1ए2) लता मंगेशकर:

एक गाना था जो शंकर-जयकिशन बना रहे थे फिल्म आम्रपाली के लिए. मैं ‘रिकॉर्डिंग स्टूडिओ’ पहुंची तो पता लगा वहां पर स्थिति बदल गई थी. किसी और ‘प्रोड्यूसर’ ने उनसे वो ‘ट्यून’ पहले ही मांग रखी थी. तो वो लोग सोच रहे थे कि क्या किया जाए! तो शंकरजी ने मुझसे कहा कि ‘लताजी, आप कुछ सुझाइए.’ तो मैंने उन्हें कुछ गा के सुनाया कि ‘यह... इस तरह से कैसा रहेगा?’ तो वो खुश हो गए, बोले, ‘यह तो बहुत अच्छा है, इसी को लेते हैं’. वो गाना था ‘जाओ रे, जोगी तुम जाओ रे.’ तो ऐसा होता था उस ज़माने में!



1 बी) सुमन कल्याणपुर

और अब सुनिए यह गीत, इसे फिल्म जानवर के 'हीरो' शम्मी कपूर ने अपने, मेरा मतलब है फिल्म की 'हीरोइन' राजश्री को कुछ सवाल 'टेप' करके भेजे. और राजश्री का जवाब क्या था, यह शंकर -जयकिशन-जी ने मेरी आवाज़ में संगीतबद्ध किया. इस जवाब को लिखा हसरत जयपुरी ने. सवाल क्या है, जवाब सुनकर महसूस कीजिए.
गीत: मेरे संग गा, गुनगुना..... (जानवर)

मैं अब जो युगलगान आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रही हूँ, वो फिल्म 'सांझ और सवेरा' का है. आप तो जान ही गए होंगे कि यह कौन सा गीत है. जी हाँ! वही है, जिसे मैंने और रफ़ी साहब ने गाया है. मैं खासकर इसलिए आपको सुनवा रही हूँ कि आजकल मैं जहां भी 'प्रोग्राम' में जाती हूँ, लोग इसी गाने की फरमाइश बार-बार करते हैं. शास्त्रीय संगीत के आधार पर ठुमरी का अंग देकर शंकर- जयकिशन-जी ने संगीतबद्ध किया, और बोल हैं हसरत जयपुरी के.
गीत: अजहुं न आए बालमा, सावन बीता जाए (सांझ और सवेरा)



1 सी) इन्दीवर
फौजी भाइयों, संगीत की दुनिया में शंकर-जयकिशन का एकछत्र राज रहा है, कई दिनों तक. जब उनका नाम पडता है तो हम अच्छी चीज़ की ही आशा रखते हैं. तो सुनिए वह गीत जो उन्होंने मेरी फिल्म ‘रेशम की डोरी’ के लिए ‘कम्पोज़’ किया था...
गीत: बहना ने भाई की कलाई पे... (सुमन कल्याणपुर)


2) प्रत्यक्ष/ अप्रत्यक्ष कथन


2 ए) एफ.सी.मेहरा:

2 ए1) दोस्तों, मैंने अब तक तेईस (23) फिल्में बनाई हैं, और मुझे बहुत अच्छा लगा कि आपने सबको पसन्द किया है, खास करके उनके संगीत को. संगीत में शंकर-जयकिशन से मेरा साथ लम्बा रहा है. मेरी फिल्म ‘उजाला’ का एक गीत सुनिए जिसमें इन्हीं का संगीत है. आपको ताज्जुब होगा कि इस फिल्म के एक-दो नहीं, सारे गाने ‘हिट’ थे...
गीत: झूमता मौसम मस्त महीना..... (मन्ना डे एवं लता)

2 ए2) पन्द्रह (15) साल पहले शम्मी कपूर का दौर था. संगीत में उनकी समझ अच्छी थी. उनका एक खास अन्दाज़ था, और गाने भी वही अन्दाज़ में बनाए जाते थे. जिन लोगों ने मेरी फिल्म ‘प्रोफेसर’ देखी होगी, उनको पता होगा कि इसकी सफलता में इसके संगीत का बडा हाथ है. इसमें भी शम्मी कपूर की अदाकारी ने चार चांद लगा दिए थे. अब मैं आपको ‘प्रोफेसर’ फिल्म का गाना सुनाता हूं जो उनके खास अन्दाज़ में बना है...
गीत: ऐ गुलबदन..... (रफी)

2 ए3) मैं आमतौर से ऐसी ही फिल्में बनाता हूं जो देखनेवालों का दिल बहलाए. मगर एक फिल्म ऐसी भी बनाई थी जो बहुत ही हटकर थी – ‘आम्रपाली’. सैकडों साल पहले का ज़माना था, और बहुत ध्यान रखा गया था कि हर काम उसी ढंग से हो. संगीत में थोडा ‘क्लासिकल’ अन्दाज़ लिया गया, फिर भी इसके गाने ‘हिट’ हुए, खास कर यह गीत.....
गीत: तडप ये दिन रात की..... (लता)

2 ए4) अब मैं अपनी फिल्म ‘प्रिंस’ का एक गीत सुनाऊंगा. मगर इससे पहले आपको बता दूं कि ‘स्क्रीन’ पर इसे मेरे दोस्त शम्मी कपूर ने गाया था. मैंने जैसे आपको बताया है, इसका अदाकारी का अन्दाज़ निराला था. इसकी ‘रिदम’ की ‘सेंस’ इतनी अच्छी थी कि वो गाने क हर एक लफ्ज़ खुद बन जाता था. तो आप सोचिए कि यह गाना कैसे उसने गाया होगा.....
गीत: बदन पे सितारे लपेटे हुए..... (रफी)

2 ए5) फौजी भाइयों, लाखों रुपए डालकर एक फिल्म बनाई जाती है, और फिर उसका फैसला देखनेवालों पर छोड दिया जाता है. उन्हें पसन्द आई तो फिल्म ‘हिट’, ना पसन्द आई तो ‘फ्लॉप’. मेरी फिल्म ‘लाल-पत्थर’ बंगाली में बहुत चली, मगर हिन्दी में इतना न चल सकी. मगर इसका संगीत फिर भी बहुत पसन्द किया गया. इसीका गीत सुनिए
गीत: गीत गाता हूं मैं..... (किशोर कुमार)



2 बी) महबूब (गीतकार)

अब आगे बढ़ते हुए आपको बताना चाहूंगा उस गाने के बारे में जिसको सुन-सुन के मुझमें लिखने का शौक पैदा हुआ. जैसा मैंने कहा कि मेरे 'फ़ादर' हमेशा मेरे 'अगेन्स्ट' रहे, मेरे शौक़ के, लिखने के, उनका एक तसव्वुर था कि उनका बेटा एक शायर बनके, मुशायरे में बैठके, शराब पी के कहीं पड़ा ना हो! ग़लत ख़याल था क्यूंकि मैं गीतकार बनना चाहता था. अब मुझे बचपन से शौक़ था जिनके गानों का वो थे हसरत साहब, जिनको मैं अपना रूहानी गुरु मानता हूँ. शंकर-जयकिशन साहब का 'म्यूज़िक', या मजरूह साहब के लें आप, साहिर साहब के लें, तो मेरी एक आदत थी कि मैं इन गानों को 'कैसेट' पर 'रिकोर्ड' करवाता था, रात के वक़्त 'टेप' लगाके, 'इयरफोन' लगाके, इन गीतों को सुना करता था, जिनको सुनकर मुझे गानों को समझने कि क्षमता आई और सोचने लगा कि इतनी खूबसूरती से इंसान ३ 'मिनट' में अपने जज़बात, अपने अहसासात को 'म्यूज़िक' में ढालकर आपके सामने पेश करता है. ऐसे गानों को मैं रातों को जाग-जागकर सुनता था, इससे मेरे वालिद नाराज़ भी होते थे, लेकिन मैंने अपने शौक़ को पलने दिया और उन तमाम गानों में से एक गाना मैं आपको सुनाना चाहता हूँ, जो मुझे बहुत पसंद है और उम्मीद है, आपको भी पसंद होगा वो गाना है चोरी-चोरी का, 'ये रात भीगी-भीगी ये मस्त फ़िज़ाएं...'
गीत: 'ये रात भीगी-भीगी...'


2 सी) रहमान:

अब छोटी बहन का गाना सुनिए, मेरा मतलब है फिल्म छोटी बहन का यह गाना - छोटी बहन ने नहीं बल्कि बड़े भाई ने गाया था, यानि खाकसार ने. चूंकि यह गाना फिल्म की 'सिचुएशन' में कुछ ठीक बैठ नहीं रहा था, इसे मेरे इसरार से फिल्म से काट दिया गया. फिल्म की 'रिलीज़' के बाद जब यह गाना रेडियो पर सुनाया गया, और बहुत 'पॉपुलर' हुआ तो इसे फिर से फिल्म में डाल दिया गया. आपको याद आया यह कौनसा गाना था?
गीत : जाऊं कहाँ बता ऐ दिल.....(मुकेश, छोटी बहन)


2 डी) संगीतकार रोशन:

प्रश्नकर्ता: अच्छा रोशनजी.. भारतीय और विदेशी ‘ऑर्केस्ट्रा’ की मिलावट कहां तक होनी चाहिए?
रोशन: वहीं तक, जहां तक गाने का रूप निखर सके. लिबास चाहे कोई भी हो, आत्मा हिन्दुस्तानी होना ज़रूरी है. गीतकार शैलेन्द्र के शब्दों में – मेरा जूता है जापानी, ये पतलून इंग्लिस्तानी, सर पे लाल टोपी रूसी, फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी!
प्रश्नकर्ता: तो फौजी भाइयों को यह गाना सुना दिया जाए? रोशन: अरे नहीं-नहीं! फौजी भाइयों के लिए यह गाना मैं लेकर आया हूं.
गीत: जाने मेरा दिल किसे ढूंढ रहा है... (रफी, लाट साहब)

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