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Hindi Film Personalities on Shankar-Jaikishan/ हिन्दी फिल्म जगत की हस्तियां शंकर-जयकिशन के बारे में

Monday, January 11, 2010


मन्ना डे के साक्षात्कार के कुछ और अंश

कमल शर्मा: एक सवाल हमारे मन में आता है दादा, 'फिल्म इंडस्ट्री' के बहुत बड़े 'शोमैन' माने जाते हैं राज कपूर साहब, और राज कपूर के लिए मुकेश जी की आवाज़ जो थी वो पर्याय बन गयी थी. लेकिन बहुत सारे 'रोमॅंटिक सॉंग्स' जो हैं वो आपने, जो राज कपूर पर फिल्माए गये हैं, उनमें आपकी आवाज़ है. ऐसे बहुत सारे 'डुयेट्स' भी हैं लता जी के साथ में, लेकिन उसमें जो 'हीरो' की आवाज़ है वो आपकी है. तो मैं यह जानना चाहता हूं कि राज कपूर साहब के साथ में आपका जुडाव कैसे हुआ जबकि वहाँ एक पूरी 'टीम' मानी जाती है, शंकर-जयकिशन, हसरत, शैलेंद्र, मुकेश और राज कपूर साहब.
मन्ना डे: शंकर-जयकिशन के शंकर जी जो थे ना, वो हमेशा बोला करते थे कि मन्ना जी, आपकी आवाज़ ऐसी है, इस आवाज़ को ठीक तरह से 'एक्सप्लॉइट' नहीं कर सकते हैं, इधर के जो, हमारे जो 'म्यूज़िक डाइरेक्टर्स' लोग हैं. मैं चाहता हूं कि आप से 'रोमॅंटिक सॉंग्स' भी हम गवाएँगे.' मुझे याद है मैने शंकर जी से कहा था की कभी गवा कर देखिए ना कि होता है या नहीं मुझसे! बोले 'ठीक है, हम गवाएँगे आपको, आप देखिएगा'. तो फिर एक 'पिक्चर' बन रही थी चोरी-चोरी, और 'पिक्चर' बना रहे थे मद्रास के चेटियार साहब. गाने की 'रेकॉर्डिंग' यहीं, मीनू कात्रक साहब ने 'रेकॉर्डिंग' की थी. तो यह गाना जब बना "ये रात भीगी-भीगी", शंकर जी ने मुझे बुलाया, मैं जाके 'रिहर्सल' किया, लता भी आई 'रिहर्सल' करके, फिर तीन-चार दिन बाद हम 'रेकॉर्डिंग थियेटर' गये. वहाँ चेटियार साहब भी थे. बोले 'अरे भाई, यह बहुत 'इंपॉर्टेंट सॉंग' है 'पिक्चर' की, आप लोगों ने मुकेश को क्यों नहीं बुलाया?' मेरा तो दिल बैठ गया. तो शंकर जी ने कहा कि 'सेठ जी, यह गाना तो मन्ना जी ही गाएँगे, और लता जी, ये दोनों मिल कर गाएँगे, गाना सुन के उसके बाद बोलिए'. तो वो बैठ गये जाके. फिर 'रिहर्सल' करने के बाद, 'वॉइस रिहर्सल' करने जब 'माइक' के पास पहुँचे, तो अंदर से सुनके वो साहब बाहर आए. बोले 'आप तो बहुत अच्छा गा लेते हैं!' मुझसे कहा. तब मैने, सोचा कि अब तो जम के गाना चाहिए ताकि इनके मन में बैठ जाए कि यही हैं मेरे 'फ्यूचर प्लेबॅक सिंगर'. और उन दिनों में मैं बहुत 'स्ट्रगल' कर रहा था. 'रोमॅंटिक' गाने बहुत कम गाता था तब. मेरे ख़याल में शंकर जी ने शुरू करवाया था "ये रात भीगी-भीगी" से. और उसके बाद राज साहब ने कहा कि 'आप गाएँगे मेरे गाने आज से'. आपके लायक जितने 'रोमॅंटिक' गाने, आप गाएँगे.

कमल शर्मा: दादा, एक बात मैं और जानना चाहूँगा, आज कल तो 'रेकॉर्डिंग' में, 'टेक्नीक' में, माहौल में, बहुत बदलाव आ गया है. आप ने जिस दौर में अपने गीत 'रेकॉर्ड' करवाए हैं, वो दौर ही अलग था, माहौल भी अलग था. थोडा सा हमें बताएँगे एक गाने की 'रेकॉर्डिंग' से पहले कितनी मेहनत करनी पडती थी, कितने दिन में एक गाना बनता था, और कैसा माहौल हुआ करता था?
मन्ना डे: बहुत-बहुत 'इंपॉर्टेंट' बात है यह कि आज के ज़माने में, आज भी लोग हमारे गाए हुए पुराने ज़माने के गीत क्यों सुनते हैं? और सुनके मज़ा भी लेते हैं, और ऐसा भी कहते हुए मैने सुना है कि ऐसे गाने आज बनते क्यों नहीं हैं? इसकी वजह यह है की जब हम लोग काम करते थे, 'म्यूज़िक डाइरेक्टर' मुझे 'फोन' करते थे कि चले आओ, गाना 'रेडी' है. बिल्कुल जाकर के देखा कि गाना 'रेडी' है, गाना बना लिया है उन्होंने. गाना जिन्होंने लिखा, शैलेंद्र हों, हसरत साहब हों, मजरूह साहब हों, लुधियानवी साहब हों, कोई भी हों वो मौजूद होते थे. और फिर गाने का 'रिहर्सल' शुरू होता था. एक दिन, दो दिन, तीन दिन में अगर उनको मज़ा नहीं आया, तो उनको मालूम पड जाता था कि गाने में कुछ कमी है. फिर वो काम करना शुरू करते थे. जब सब, 'प्रोड्यूसर', 'डाइरेक्टर', 'लिरिक्स राइटर', 'सिंगर्स', जब सब सहमत हो जाते थे कि 'फर्स्ट क्लास' है, चलो 'रेकॉर्डिंग' कर लेते हैं. यह जो 'टीम वर्क' था, इसी का नतीजा है कि आज तक लोग ये गाने सुनते हैं. कि भाई उस ढंग से गाना बनाया गया था कि आज भी वो गाना अमर है.

कमल शर्मा: एक चीज़ मैं जानना चाहता हूं, आज 'रेकॉर्डिंग टेक्नीक' जब बहुत 'ऎडवान्स्ड स्टेज' में है, एक से एक 'एक्विपमेंट' आ गये हैं, एक से एक नायाब 'स्टूडियो' हैं, और साज़ आ गये हैं नये-नये, बावजूद इसके वो भाव, वो 'मेलोडी' जो थी साज़ों के साथ में, वो आज के गीतों में कहीं ना कहीं हम 'मिस' करते हैं. उसे खोजते हैं लेकिन वो दिखाई नहीं देती. इसकी क्या वजह है दादा?
मन्ना डे: वो मेहनत नहीं है, वो लगन नहीं है, और वो 'सिचुएशन्स' नहीं हैं, वो प्रतिभा नहीं है. आज के जितने गाने वाले, गाने वाली हैं ना, बहुत अच्छे हैं सब, बहुत अच्छी आवाज़ है सब की, लेकिन गाने जो बनाने वाले थे - कहाँ हैं शंकर-जयकिशन, कहाँ हैं मदन मोहन, किधर हैं रोशन साहब, या सी.रामचंद्र साहब कहाँ हैं, बर्मन साहब किधर हैं? उस ढंग के गाने गवाते थे, नहीं हैं वो लोग, इसलिए 'यू मिस इट'.

Tuesday, January 5, 2010

हिन्दी फिल्म उद्योग (बॉलीवुड) की कुछ हस्तियों के शंकर-जयकिशन के बारे में दिलचस्प कथन! अभय के सौजन्य से. (शंकर-जयकिशन से सम्बन्धित विशिष्ट, विस्तृत लेखों के लिए यहां क्लिक करें शंकर-जयकिशन..... )

1) प्रत्यक्ष कथन

1 ए1) लता मंगेशकर गीत: एहसान तेरा होगा मुझपर..... (जंगली)

लता मंगेशकर: हाँ अमीन भाई! आपने मेरा यह 'रिकॉर्ड' बजाया, इससे मुझे एक बात याद आ गयी.

अमीन सायानी: बोलिए

लता मंगेशकर: ये गाना शम्मी कपूर-जी के लिए था. रफी साहब ने गाया था, और जब वो 'पिक्चराइज़' कर रहे थे तो 'डायरेक्टर' को ये लगा कि ये गाना 'हीरोइन' का भी होना चाहिए. तो उन्होंने क्या किया कि उन्होंने उसका 'म्यूज़िक' अलग रख लिया, पर रफ़ी साहब की आवाज़ पर सायरा बानो-जी से उन्होंने 'ऐक्टिंग' करवा लिया.

अमीन सायानी : ओ हो हो! (हंसते हुए)

लता मंगेशकर: तो वो गाना था रफ़ी साहब का और वो गा रही थीं. और एक दिन जयकिशनजी ने बुलाया मुझे और कहा कि 'ये गाना आपको करना है'. तो मैंने जयकिशनजी से कहा कि 'जयकिशनजी! इसका सुर तो बहुत ऊंचा है, अंतरा इतना ऊंचा है तो मैं कैसे गाऊंगी?' बोले कि 'आप कोशिश तो करके देखिए!' मैंने कहा 'ठीक है'. तो गाना लगाया गया सामने और मैं वो 'पिक्चर' देखके गा रही थी. और वो 'पिक्चर' देखके वो गाना 'रिकोर्ड' किया, और उसके बाद मैदान ऐसा खुला मिल गया कि बाद में उन्होंने "जिया हो जिया..." वो भी मुझसे ऐसे ही करवाया मुझसे, और 'ओ मेरे शाह-ए-खुबा' वो भी, उसमें भी रफ़ी साहब का गाया हुआ गाना, मैंने उस 'म्यूज़िक' पे गाया. तो इस तरह ३-४ गाने मैंने गाए थे.

1ए2) लता मंगेशकर: एक गाना था जो शंकर-जयकिशन बना रहे थे फिल्म आम्रपाली के लिए. मैं ‘रिकॉर्डिंग स्टूडिओ’ पहुंची तो पता लगा वहां पर स्थिति बदल गई थी. किसी और ‘प्रोड्यूसर’ ने उनसे वो ‘ट्यून’ पहले ही मांग रखी थी. तो वो लोग सोच रहे थे कि क्या किया जाए! तो शंकरजी ने मुझसे कहा कि ‘लताजी, आप कुछ सुझाइए.’ तो मैंने उन्हें कुछ गा के सुनाया कि ‘यह... इस तरह से कैसा रहेगा?’ तो वो खुश हो गए, बोले, ‘यह तो बहुत अच्छा है, इसी को लेते हैं’. वो गाना था ‘जाओ रे, जोगी तुम जाओ रे.’ तो ऐसा होता था उस ज़माने में!

1 बी) सुमन कल्याणपुर: और अब सुनिए यह गीत, इसे फिल्म जानवर के 'हीरो' शम्मी कपूर ने अपने, मेरा मतलब है फिल्म की 'हीरोइन' राजश्री को कुछ सवाल 'टेप' करके भेजे. और राजश्री का जवाब क्या था, यह शंकर -जयकिशन-जी ने मेरी आवाज़ में संगीतबद्ध किया. इस जवाब को लिखा हसरत जयपुरी ने. सवाल क्या है, जवाब सुनकर महसूस कीजिए. गीत: मेरे संग गा, गुनगुना..... (जानवर) मैं अब जो युगलगान आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रही हूँ, वो फिल्म 'सांझ और सवेरा' का है. आप तो जान ही गए होंगे कि यह कौन सा गीत है. जी हाँ! वही है, जिसे मैंने और रफ़ी साहब ने गाया है. मैं खासकर इसलिए आपको सुनवा रही हूँ कि आजकल मैं जहां भी 'प्रोग्राम' में जाती हूँ, लोग इसी गाने की फरमाइश बार-बार करते हैं. शास्त्रीय संगीत के आधार पर ठुमरी का अंग देकर शंकर- जयकिशन-जी ने संगीतबद्ध किया, और बोल हैं हसरत जयपुरी के. गीत: अजहुं न आए बालमा, सावन बीता जाए (सांझ और सवेरा)

1 सी) मन्ना डे
के.एस.: मन्ना साहब, एक चीज़ मैं जानना चाहता हूं कि हर किसी की ज़िंदगी में एक ऐसा मौका आता है, सामने कभी चुनौती हो,हम 'नर्वस' होने लगते हैं, मैदान छोड कर भाग खड़े होते हैं, आप के साथ कभी ऐसा हुआ?
मन्ना डे : बसंत बहार 'पिक्चर' में शंकर जयकिशन 'म्यूज़िक डाइरेक्टर' थे. वैसे तो मैने सुना था कि जब यह 'पिक्चर' बन रही थी, भारत भूषण के भाई साहब इसे बना रहे थे और उन्होने चाहा कि गाने सब रफ़ी साहब गाएँ. सब कोई सोच रहे थे की रफ़ी साहब ही गाएँगे, लेकिन शंकर ने कहा कि मैं चाहता हूं कि मन्ना डे गाएँगे ये गाने. पहला गाना 'रेकॉर्ड' किया "सुर ना सजे क्या गाऊं मैं". वो बहुत अच्च्छा गाना था और बहुत अच्छी तरह से मैने गाया था. फिर जयकिशन ने बनाया वो गाना "भय भँजना वंदना सुन हमारी". वो मैने गाया. फिर एक 'डुएट', लता और मैने गाया, "नैन मिले चैन कहाँ". फिर एक 'सिचुएशन' कहाँ से निकाले उन लोगों ने, शंकर ने कहा कि मन्ना बाबू, तैयार हो जाइए, कमर कस के बाँध लीजिए, आपके लिए यह गाना है, बहुत ज़बरदस्त गाना है. मैने कहा ठीक है, गाऊंगा. बोले कि यह 'डुएट' है. 'डुएट' है, कौन गाएगा मेरे साथ? लता? आशा? कौन गाएगा? नहीं, यह 'कॉंम्पिटीशन' का गाना है. किसके साथ 'कॉंम्पीट' करना है? बोले, भीमसेन जोशी के साथ. मैने कहा शंकर जी, क्या आप पागल हो गये हैं? भीमसेन जोशी के साथ मैं 'कॉंम्पिटीशन' में गाऊं और उनको हरा दूं? नहीं. यह हो नहीं सकता, मैं यह कर नहीं पाऊंगा. कर नहीं पाएँगे? आप 'हीरो' के लिए गाएँगे, उनको तो हारना ही है. आप 'हीरो' के लिए गा रहे हैं, 'हीरो' को तो जिताना पड़ेगा ना! आप चाहे कुछ भी कर लीजिए, मैं गाऊंगा नहीं, आप रफ़ी साहब को बुला लीजिए. मैं घर आ गया, अपनी बीवी से कहा कि चलो, हम लोग भाग जाते हैं कुछ दिनों के लिए यहाँ से. (के.एस. लाफ्स लाउड्ली). हम लोग भाग जाएँगे, किसी को बताएँगे नहीं कि कहाँ जा रहे हैं. 15 दिन के बाद वापस आएँगे, तब तक यह गाना 'रेकॉर्ड' हो जाएगा. तो मेरी बीवी ने कहा कि कैसी बातें करते हैं आप, यही तो मौका है. मैने कहा आप तो गाएँगी नहीं, गाना तो मुझे पड़ेगा. और फिर भीमसेन जोशी के साथ में बैठ के गाना, यह कोई मामूली बात नहीं है. वो बोली कि यही तो आप भूल कर रहे हैं, 'सिचुएशन' इस ढंग से बनाया गया है कि आपको जिताना है, आप जीतेंगे, 'हीरो' जीतेंगे, और आप जब गाएँगे तो भीमसेन जोशी थोड़ा कम गाएँगे और आप थोड़ा और 'आउट' गाइए, तो हो जाएगा. तो मैंने गाया वो गाना और भीमसेन जोशी जी ने कहा की मन्ना साहब, आप 'क्लॅसिकल' गाया कीजिए, आप अच्छा गाते हैं. वो आप लोगों ने सुने होंगे "केतकी गुलाब जूही चंपक बन फूले". बहुत अच्छ गाना है, बहुत अच्छा गाना है, क्या गाया था उन्होने! अब भीमसेन जोशी की बात क्या कहें!
के.एस.: दादा, बहुत देर से हम संगीत की बात कर रहे हैं, लेकिन अभी तक कोई गीत नहीं छेडा है. और हम चाहते हैं कि बहुत जल्दी एक गीत आप अपने पसंद का श्रोताओं को सुनवा दें.
मन्ना डे: ज़रूर! अभी 'क्लॅसिकल म्यूज़िक' को जब बात हो रही थी ना, एक 'क्लॅसिकल म्यूज़िक' पर आधारित गाना जो शंकर जयकिशन के 'म्यूज़िक डाइरेक्शन' में हम लोग गाए थे, आशा जी और मैं, सुनिए बहुत अच्छा गाना है.

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गाना: रे मन सुर में गा (लाल पत्थर)

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2) प्रत्यक्ष/ अप्रत्यक्ष कथन

2 ए) एफ.सी.मेहरा:

2 ए1) दोस्तों, मैंने अब तक तेईस (23) फिल्में बनाई हैं, और मुझे बहुत अच्छा लगा कि आपने सबको पसन्द किया है, खास करके उनके संगीत को. संगीत में शंकर-जयकिशन से मेरा साथ लम्बा रहा है. मेरी फिल्म ‘उजाला’ का एक गीत सुनिए जिसमें इन्हीं का संगीत है. आपको ताज्जुब होगा कि इस फिल्म के एक-दो नहीं, सारे गाने ‘हिट’ थे... गीत: झूमता मौसम मस्त महीना..... (मन्ना डे एवं लता)

2 ए2) पन्द्रह (15) साल पहले शम्मी कपूर का दौर था. संगीत में उनकी समझ अच्छी थी. उनका एक खास अन्दाज़ था, और गाने भी वही अन्दाज़ में बनाए जाते थे. जिन लोगों ने मेरी फिल्म ‘प्रोफेसर’ देखी होगी, उनको पता होगा कि इसकी सफलता में इसके संगीत का बडा हाथ है. इसमें भी शम्मी कपूर की अदाकारी ने चार चांद लगा दिए थे. अब मैं आपको ‘प्रोफेसर’ फिल्म का गाना सुनाता हूं जो उनके खास अन्दाज़ में बना है... गीत: ऐ गुलबदन..... (रफी)

2 ए3) मैं आमतौर से ऐसी ही फिल्में बनाता हूं जो देखनेवालों का दिल बहलाए. मगर एक फिल्म ऐसी भी बनाई थी जो बहुत ही हटकर थी – ‘आम्रपाली’. सैकडों साल पहले का ज़माना था, और बहुत ध्यान रखा गया था कि हर काम उसी ढंग से हो. संगीत में थोडा ‘क्लासिकल’ अन्दाज़ लिया गया, फिर भी इसके गाने ‘हिट’ हुए, खास कर यह गीत..... गीत: तडप ये दिन रात की..... (लता)

2 ए4) अब मैं अपनी फिल्म ‘प्रिंस’ का एक गीत सुनाऊंगा. मगर इससे पहले आपको बता दूं कि ‘स्क्रीन’ पर इसे मेरे दोस्त शम्मी कपूर ने गाया था. मैंने जैसे आपको बताया है, इसका अदाकारी का अन्दाज़ निराला था. इसकी ‘रिदम’ की ‘सेंस’ इतनी अच्छी थी कि वो गाने क हर एक लफ्ज़ खुद बन जाता था. तो आप सोचिए कि यह गाना कैसे उसने गाया होगा..... गीत: बदन पे सितारे लपेटे हुए..... (रफी)

2 ए5) फौजी भाइयों, लाखों रुपए डालकर एक फिल्म बनाई जाती है, और फिर उसका फैसला देखनेवालों पर छोड दिया जाता है. उन्हें पसन्द आई तो फिल्म ‘हिट’, ना पसन्द आई तो ‘फ्लॉप’. मेरी फिल्म ‘लाल-पत्थर’ बंगाली में बहुत चली, मगर हिन्दी में इतना न चल सकी. मगर इसका संगीत फिर भी बहुत पसन्द किया गया. इसीका गीत सुनिए गीत: गीत गाता हूं मैं..... (किशोर कुमार)

2 बी) महबूब (गीतकार) अब आगे बढ़ते हुए आपको बताना चाहूंगा उस गाने के बारे में जिसको सुन-सुन के मुझमें लिखने का शौक पैदा हुआ. जैसा मैंने कहा कि मेरे 'फ़ादर' हमेशा मेरे 'अगेन्स्ट' रहे, मेरे शौक़ के, लिखने के, उनका एक तसव्वुर था कि उनका बेटा एक शायर बनके, मुशायरे में बैठके, शराब पी के कहीं पड़ा ना हो! ग़लत ख़याल था क्यूंकि मैं गीतकार बनना चाहता था. अब मुझे बचपन से शौक़ था जिनके गानों का वो थे हसरत साहब, जिनको मैं अपना रूहानी गुरु मानता हूँ. शंकर-जयकिशन साहब का 'म्यूज़िक', या मजरूह साहब के लें आप, साहिर साहब के लें, तो मेरी एक आदत थी कि मैं इन गानों को 'कैसेट' पर 'रिकोर्ड' करवाता था, रात के वक़्त 'टेप' लगाके, 'इयरफोन' लगाके, इन गीतों को सुना करता था, जिनको सुनकर मुझे गानों को समझने कि क्षमता आई और सोचने लगा कि इतनी खूबसूरती से इंसान ३ 'मिनट' में अपने जज़बात, अपने अहसासात को 'म्यूज़िक' में ढालकर आपके सामने पेश करता है. ऐसे गानों को मैं रातों को जाग-जागकर सुनता था, इससे मेरे वालिद नाराज़ भी होते थे, लेकिन मैंने अपने शौक़ को पलने दिया और उन तमाम गानों में से एक गाना मैं आपको सुनाना चाहता हूँ, जो मुझे बहुत पसंद है और उम्मीद है, आपको भी पसंद होगा वो गाना है चोरी-चोरी का, 'ये रात भीगी-भीगी ये मस्त फ़िज़ाएं...' गीत: 'ये रात भीगी-भीगी...'

2 सी) रहमान: अब छोटी बहन का गाना सुनिए, मेरा मतलब है फिल्म छोटी बहन का यह गाना - छोटी बहन ने नहीं बल्कि बड़े भाई ने गाया था, यानि खाकसार ने. चूंकि यह गाना फिल्म की 'सिचुएशन' में कुछ ठीक बैठ नहीं रहा था, इसे मेरे इसरार से फिल्म से काट दिया गया. फिल्म की 'रिलीज़' के बाद जब यह गाना रेडियो पर सुनाया गया, और बहुत 'पॉपुलर' हुआ तो इसे फिर से फिल्म में डाल दिया गया. आपको याद आया यह कौनसा गाना था? गीत : जाऊं कहाँ बता ऐ दिल.....(मुकेश, छोटी बहन)

2 डी) संगीतकार रोशन:

प्रश्नकर्ता: अच्छा रोशनजी.. भारतीय और विदेशी ‘ऑर्केस्ट्रा’ की मिलावट कहां तक होनी चाहिए?

रोशन: वहीं तक, जहां तक गाने का रूप निखर सके. लिबास चाहे कोई भी हो, आत्मा हिन्दुस्तानी होना ज़रूरी है. गीतकार शैलेन्द्र के शब्दों में – मेरा जूता है जापानी, ये पतलून इंग्लिस्तानी, सर पे लाल टोपी रूसी, फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी!

प्रश्नकर्ता: तो फौजी भाइयों को यह गाना सुना दिया जाए?

रोशन: अरे नहीं-नहीं! फौजी भाइयों के लिए यह गाना मैं लेकर आया हूं. गीत: जाने मेरा दिल किसे ढूंढ रहा है... (रफी, लाट साहब)

Saturday, August 15, 2009

हिन्दी फिल्म उद्योग (बॉलीवुड)की कुछ हस्तियों के शंकर-जयकिशन के बारे में दिलचस्प कथन! अभय के सौजन्य से.

1) प्रत्यक्ष कथन


1 ए1) लता मंगेशकर

गीत: एहसान तेरा होगा मुझपर..... (जंगली)---------------------------------

लता मंगेशकर: हाँ अमीन भाई! आपने मेरा यह 'रिकॉर्ड' बजाया, इससे मुझे एक बात याद आ गयी.
अमीन सायानी: बोलिए
लता मंगेशकर: ये गाना शम्मी कपूर-जी के लिए था. रफी साहब ने गाया था, और जब वो 'पिक्चराइज़' कर रहे थे तो 'डायरेक्टर' को ये लगा कि ये गाना 'हीरोइन' का भी होना चाहिए. तो उन्होंने क्या किया कि उन्होंने उसका 'म्यूज़िक' अलग रख लिया, पर रफ़ी साहब की आवाज़ पर सायरा बानो-जी से उन्होंने 'ऐक्टिंग' करवा लिया.
अमीन सायानी : ओ हो हो! (हंसते हुए)

लता मंगेशकर: तो वो गाना था रफ़ी साहब का और वो गा रही थीं. और एक दिन जयकिशनजी ने बुलाया मुझे और कहा कि 'ये गाना आपको करना है'. तो मैंने जयकिशनजी से कहा कि 'जयकिशनजी! इसका सुर तो बहुत ऊंचा है, अंतरा इतना ऊंचा है तो मैं कैसे गाऊंगी?' बोले कि 'आप कोशिश तो करके देखिए!' मैंने कहा 'ठीक है'. तो गाना लगाया गया सामने और मैं वो 'पिक्चर' देखके गा रही थी. और वो 'पिक्चर' देखके वो गाना 'रिकोर्ड' किया, और उसके बाद मैदान ऐसा खुला मिल गया कि बाद में उन्होंने "जिया हो जिया..." वो भी मुझसे ऐसे ही करवाया मुझसे, और 'ओ मेरे शाह-ए-खुबा' वो भी, उसमें भी रफ़ी साहब का गाया हुआ गाना, मैंने उस 'म्यूज़िक' पे गाया. तो इस तरह ३-४ गाने मैंने गाए थे.


1ए2) लता मंगेशकर:

एक गाना था जो शंकर-जयकिशन बना रहे थे फिल्म आम्रपाली के लिए. मैं ‘रिकॉर्डिंग स्टूडिओ’ पहुंची तो पता लगा वहां पर स्थिति बदल गई थी. किसी और ‘प्रोड्यूसर’ ने उनसे वो ‘ट्यून’ पहले ही मांग रखी थी. तो वो लोग सोच रहे थे कि क्या किया जाए! तो शंकरजी ने मुझसे कहा कि ‘लताजी, आप कुछ सुझाइए.’ तो मैंने उन्हें कुछ गा के सुनाया कि ‘यह... इस तरह से कैसा रहेगा?’ तो वो खुश हो गए, बोले, ‘यह तो बहुत अच्छा है, इसी को लेते हैं’. वो गाना था ‘जाओ रे, जोगी तुम जाओ रे.’ तो ऐसा होता था उस ज़माने में!



1 बी) सुमन कल्याणपुर

और अब सुनिए यह गीत, इसे फिल्म जानवर के 'हीरो' शम्मी कपूर ने अपने, मेरा मतलब है फिल्म की 'हीरोइन' राजश्री को कुछ सवाल 'टेप' करके भेजे. और राजश्री का जवाब क्या था, यह शंकर -जयकिशन-जी ने मेरी आवाज़ में संगीतबद्ध किया. इस जवाब को लिखा हसरत जयपुरी ने. सवाल क्या है, जवाब सुनकर महसूस कीजिए.
गीत: मेरे संग गा, गुनगुना..... (जानवर)

मैं अब जो युगलगान आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रही हूँ, वो फिल्म 'सांझ और सवेरा' का है. आप तो जान ही गए होंगे कि यह कौन सा गीत है. जी हाँ! वही है, जिसे मैंने और रफ़ी साहब ने गाया है. मैं खासकर इसलिए आपको सुनवा रही हूँ कि आजकल मैं जहां भी 'प्रोग्राम' में जाती हूँ, लोग इसी गाने की फरमाइश बार-बार करते हैं. शास्त्रीय संगीत के आधार पर ठुमरी का अंग देकर शंकर- जयकिशन-जी ने संगीतबद्ध किया, और बोल हैं हसरत जयपुरी के.
गीत: अजहुं न आए बालमा, सावन बीता जाए (सांझ और सवेरा)



1 सी) इन्दीवर
फौजी भाइयों, संगीत की दुनिया में शंकर-जयकिशन का एकछत्र राज रहा है, कई दिनों तक. जब उनका नाम पडता है तो हम अच्छी चीज़ की ही आशा रखते हैं. तो सुनिए वह गीत जो उन्होंने मेरी फिल्म ‘रेशम की डोरी’ के लिए ‘कम्पोज़’ किया था...
गीत: बहना ने भाई की कलाई पे... (सुमन कल्याणपुर)


2) प्रत्यक्ष/ अप्रत्यक्ष कथन


2 ए) एफ.सी.मेहरा:

2 ए1) दोस्तों, मैंने अब तक तेईस (23) फिल्में बनाई हैं, और मुझे बहुत अच्छा लगा कि आपने सबको पसन्द किया है, खास करके उनके संगीत को. संगीत में शंकर-जयकिशन से मेरा साथ लम्बा रहा है. मेरी फिल्म ‘उजाला’ का एक गीत सुनिए जिसमें इन्हीं का संगीत है. आपको ताज्जुब होगा कि इस फिल्म के एक-दो नहीं, सारे गाने ‘हिट’ थे...
गीत: झूमता मौसम मस्त महीना..... (मन्ना डे एवं लता)

2 ए2) पन्द्रह (15) साल पहले शम्मी कपूर का दौर था. संगीत में उनकी समझ अच्छी थी. उनका एक खास अन्दाज़ था, और गाने भी वही अन्दाज़ में बनाए जाते थे. जिन लोगों ने मेरी फिल्म ‘प्रोफेसर’ देखी होगी, उनको पता होगा कि इसकी सफलता में इसके संगीत का बडा हाथ है. इसमें भी शम्मी कपूर की अदाकारी ने चार चांद लगा दिए थे. अब मैं आपको ‘प्रोफेसर’ फिल्म का गाना सुनाता हूं जो उनके खास अन्दाज़ में बना है...
गीत: ऐ गुलबदन..... (रफी)

2 ए3) मैं आमतौर से ऐसी ही फिल्में बनाता हूं जो देखनेवालों का दिल बहलाए. मगर एक फिल्म ऐसी भी बनाई थी जो बहुत ही हटकर थी – ‘आम्रपाली’. सैकडों साल पहले का ज़माना था, और बहुत ध्यान रखा गया था कि हर काम उसी ढंग से हो. संगीत में थोडा ‘क्लासिकल’ अन्दाज़ लिया गया, फिर भी इसके गाने ‘हिट’ हुए, खास कर यह गीत.....
गीत: तडप ये दिन रात की..... (लता)

2 ए4) अब मैं अपनी फिल्म ‘प्रिंस’ का एक गीत सुनाऊंगा. मगर इससे पहले आपको बता दूं कि ‘स्क्रीन’ पर इसे मेरे दोस्त शम्मी कपूर ने गाया था. मैंने जैसे आपको बताया है, इसका अदाकारी का अन्दाज़ निराला था. इसकी ‘रिदम’ की ‘सेंस’ इतनी अच्छी थी कि वो गाने क हर एक लफ्ज़ खुद बन जाता था. तो आप सोचिए कि यह गाना कैसे उसने गाया होगा.....
गीत: बदन पे सितारे लपेटे हुए..... (रफी)

2 ए5) फौजी भाइयों, लाखों रुपए डालकर एक फिल्म बनाई जाती है, और फिर उसका फैसला देखनेवालों पर छोड दिया जाता है. उन्हें पसन्द आई तो फिल्म ‘हिट’, ना पसन्द आई तो ‘फ्लॉप’. मेरी फिल्म ‘लाल-पत्थर’ बंगाली में बहुत चली, मगर हिन्दी में इतना न चल सकी. मगर इसका संगीत फिर भी बहुत पसन्द किया गया. इसीका गीत सुनिए
गीत: गीत गाता हूं मैं..... (किशोर कुमार)



2 बी) महबूब (गीतकार)

अब आगे बढ़ते हुए आपको बताना चाहूंगा उस गाने के बारे में जिसको सुन-सुन के मुझमें लिखने का शौक पैदा हुआ. जैसा मैंने कहा कि मेरे 'फ़ादर' हमेशा मेरे 'अगेन्स्ट' रहे, मेरे शौक़ के, लिखने के, उनका एक तसव्वुर था कि उनका बेटा एक शायर बनके, मुशायरे में बैठके, शराब पी के कहीं पड़ा ना हो! ग़लत ख़याल था क्यूंकि मैं गीतकार बनना चाहता था. अब मुझे बचपन से शौक़ था जिनके गानों का वो थे हसरत साहब, जिनको मैं अपना रूहानी गुरु मानता हूँ. शंकर-जयकिशन साहब का 'म्यूज़िक', या मजरूह साहब के लें आप, साहिर साहब के लें, तो मेरी एक आदत थी कि मैं इन गानों को 'कैसेट' पर 'रिकोर्ड' करवाता था, रात के वक़्त 'टेप' लगाके, 'इयरफोन' लगाके, इन गीतों को सुना करता था, जिनको सुनकर मुझे गानों को समझने कि क्षमता आई और सोचने लगा कि इतनी खूबसूरती से इंसान ३ 'मिनट' में अपने जज़बात, अपने अहसासात को 'म्यूज़िक' में ढालकर आपके सामने पेश करता है. ऐसे गानों को मैं रातों को जाग-जागकर सुनता था, इससे मेरे वालिद नाराज़ भी होते थे, लेकिन मैंने अपने शौक़ को पलने दिया और उन तमाम गानों में से एक गाना मैं आपको सुनाना चाहता हूँ, जो मुझे बहुत पसंद है और उम्मीद है, आपको भी पसंद होगा वो गाना है चोरी-चोरी का, 'ये रात भीगी-भीगी ये मस्त फ़िज़ाएं...'
गीत: 'ये रात भीगी-भीगी...'


2 सी) रहमान:

अब छोटी बहन का गाना सुनिए, मेरा मतलब है फिल्म छोटी बहन का यह गाना - छोटी बहन ने नहीं बल्कि बड़े भाई ने गाया था, यानि खाकसार ने. चूंकि यह गाना फिल्म की 'सिचुएशन' में कुछ ठीक बैठ नहीं रहा था, इसे मेरे इसरार से फिल्म से काट दिया गया. फिल्म की 'रिलीज़' के बाद जब यह गाना रेडियो पर सुनाया गया, और बहुत 'पॉपुलर' हुआ तो इसे फिर से फिल्म में डाल दिया गया. आपको याद आया यह कौनसा गाना था?
गीत : जाऊं कहाँ बता ऐ दिल.....(मुकेश, छोटी बहन)


2 डी) संगीतकार रोशन:

प्रश्नकर्ता: अच्छा रोशनजी.. भारतीय और विदेशी ‘ऑर्केस्ट्रा’ की मिलावट कहां तक होनी चाहिए?
रोशन: वहीं तक, जहां तक गाने का रूप निखर सके. लिबास चाहे कोई भी हो, आत्मा हिन्दुस्तानी होना ज़रूरी है. गीतकार शैलेन्द्र के शब्दों में – मेरा जूता है जापानी, ये पतलून इंग्लिस्तानी, सर पे लाल टोपी रूसी, फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी!
प्रश्नकर्ता: तो फौजी भाइयों को यह गाना सुना दिया जाए? रोशन: अरे नहीं-नहीं! फौजी भाइयों के लिए यह गाना मैं लेकर आया हूं.
गीत: जाने मेरा दिल किसे ढूंढ रहा है... (रफी, लाट साहब)
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