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Monday, January 11, 2010


मन्ना डे के साक्षात्कार के कुछ और अंश

कमल शर्मा: एक सवाल हमारे मन में आता है दादा, 'फिल्म इंडस्ट्री' के बहुत बड़े 'शोमैन' माने जाते हैं राज कपूर साहब, और राज कपूर के लिए मुकेश जी की आवाज़ जो थी वो पर्याय बन गयी थी. लेकिन बहुत सारे 'रोमॅंटिक सॉंग्स' जो हैं वो आपने, जो राज कपूर पर फिल्माए गये हैं, उनमें आपकी आवाज़ है. ऐसे बहुत सारे 'डुयेट्स' भी हैं लता जी के साथ में, लेकिन उसमें जो 'हीरो' की आवाज़ है वो आपकी है. तो मैं यह जानना चाहता हूं कि राज कपूर साहब के साथ में आपका जुडाव कैसे हुआ जबकि वहाँ एक पूरी 'टीम' मानी जाती है, शंकर-जयकिशन, हसरत, शैलेंद्र, मुकेश और राज कपूर साहब.
मन्ना डे: शंकर-जयकिशन के शंकर जी जो थे ना, वो हमेशा बोला करते थे कि मन्ना जी, आपकी आवाज़ ऐसी है, इस आवाज़ को ठीक तरह से 'एक्सप्लॉइट' नहीं कर सकते हैं, इधर के जो, हमारे जो 'म्यूज़िक डाइरेक्टर्स' लोग हैं. मैं चाहता हूं कि आप से 'रोमॅंटिक सॉंग्स' भी हम गवाएँगे.' मुझे याद है मैने शंकर जी से कहा था की कभी गवा कर देखिए ना कि होता है या नहीं मुझसे! बोले 'ठीक है, हम गवाएँगे आपको, आप देखिएगा'. तो फिर एक 'पिक्चर' बन रही थी चोरी-चोरी, और 'पिक्चर' बना रहे थे मद्रास के चेटियार साहब. गाने की 'रेकॉर्डिंग' यहीं, मीनू कात्रक साहब ने 'रेकॉर्डिंग' की थी. तो यह गाना जब बना "ये रात भीगी-भीगी", शंकर जी ने मुझे बुलाया, मैं जाके 'रिहर्सल' किया, लता भी आई 'रिहर्सल' करके, फिर तीन-चार दिन बाद हम 'रेकॉर्डिंग थियेटर' गये. वहाँ चेटियार साहब भी थे. बोले 'अरे भाई, यह बहुत 'इंपॉर्टेंट सॉंग' है 'पिक्चर' की, आप लोगों ने मुकेश को क्यों नहीं बुलाया?' मेरा तो दिल बैठ गया. तो शंकर जी ने कहा कि 'सेठ जी, यह गाना तो मन्ना जी ही गाएँगे, और लता जी, ये दोनों मिल कर गाएँगे, गाना सुन के उसके बाद बोलिए'. तो वो बैठ गये जाके. फिर 'रिहर्सल' करने के बाद, 'वॉइस रिहर्सल' करने जब 'माइक' के पास पहुँचे, तो अंदर से सुनके वो साहब बाहर आए. बोले 'आप तो बहुत अच्छा गा लेते हैं!' मुझसे कहा. तब मैने, सोचा कि अब तो जम के गाना चाहिए ताकि इनके मन में बैठ जाए कि यही हैं मेरे 'फ्यूचर प्लेबॅक सिंगर'. और उन दिनों में मैं बहुत 'स्ट्रगल' कर रहा था. 'रोमॅंटिक' गाने बहुत कम गाता था तब. मेरे ख़याल में शंकर जी ने शुरू करवाया था "ये रात भीगी-भीगी" से. और उसके बाद राज साहब ने कहा कि 'आप गाएँगे मेरे गाने आज से'. आपके लायक जितने 'रोमॅंटिक' गाने, आप गाएँगे.

कमल शर्मा: दादा, एक बात मैं और जानना चाहूँगा, आज कल तो 'रेकॉर्डिंग' में, 'टेक्नीक' में, माहौल में, बहुत बदलाव आ गया है. आप ने जिस दौर में अपने गीत 'रेकॉर्ड' करवाए हैं, वो दौर ही अलग था, माहौल भी अलग था. थोडा सा हमें बताएँगे एक गाने की 'रेकॉर्डिंग' से पहले कितनी मेहनत करनी पडती थी, कितने दिन में एक गाना बनता था, और कैसा माहौल हुआ करता था?
मन्ना डे: बहुत-बहुत 'इंपॉर्टेंट' बात है यह कि आज के ज़माने में, आज भी लोग हमारे गाए हुए पुराने ज़माने के गीत क्यों सुनते हैं? और सुनके मज़ा भी लेते हैं, और ऐसा भी कहते हुए मैने सुना है कि ऐसे गाने आज बनते क्यों नहीं हैं? इसकी वजह यह है की जब हम लोग काम करते थे, 'म्यूज़िक डाइरेक्टर' मुझे 'फोन' करते थे कि चले आओ, गाना 'रेडी' है. बिल्कुल जाकर के देखा कि गाना 'रेडी' है, गाना बना लिया है उन्होंने. गाना जिन्होंने लिखा, शैलेंद्र हों, हसरत साहब हों, मजरूह साहब हों, लुधियानवी साहब हों, कोई भी हों वो मौजूद होते थे. और फिर गाने का 'रिहर्सल' शुरू होता था. एक दिन, दो दिन, तीन दिन में अगर उनको मज़ा नहीं आया, तो उनको मालूम पड जाता था कि गाने में कुछ कमी है. फिर वो काम करना शुरू करते थे. जब सब, 'प्रोड्यूसर', 'डाइरेक्टर', 'लिरिक्स राइटर', 'सिंगर्स', जब सब सहमत हो जाते थे कि 'फर्स्ट क्लास' है, चलो 'रेकॉर्डिंग' कर लेते हैं. यह जो 'टीम वर्क' था, इसी का नतीजा है कि आज तक लोग ये गाने सुनते हैं. कि भाई उस ढंग से गाना बनाया गया था कि आज भी वो गाना अमर है.

कमल शर्मा: एक चीज़ मैं जानना चाहता हूं, आज 'रेकॉर्डिंग टेक्नीक' जब बहुत 'ऎडवान्स्ड स्टेज' में है, एक से एक 'एक्विपमेंट' आ गये हैं, एक से एक नायाब 'स्टूडियो' हैं, और साज़ आ गये हैं नये-नये, बावजूद इसके वो भाव, वो 'मेलोडी' जो थी साज़ों के साथ में, वो आज के गीतों में कहीं ना कहीं हम 'मिस' करते हैं. उसे खोजते हैं लेकिन वो दिखाई नहीं देती. इसकी क्या वजह है दादा?
मन्ना डे: वो मेहनत नहीं है, वो लगन नहीं है, और वो 'सिचुएशन्स' नहीं हैं, वो प्रतिभा नहीं है. आज के जितने गाने वाले, गाने वाली हैं ना, बहुत अच्छे हैं सब, बहुत अच्छी आवाज़ है सब की, लेकिन गाने जो बनाने वाले थे - कहाँ हैं शंकर-जयकिशन, कहाँ हैं मदन मोहन, किधर हैं रोशन साहब, या सी.रामचंद्र साहब कहाँ हैं, बर्मन साहब किधर हैं? उस ढंग के गाने गवाते थे, नहीं हैं वो लोग, इसलिए 'यू मिस इट'.

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